फूल ख़ुशबू या हवा है फ़िक्र की दहलीज़ पर कौन दस्तक दे रहा है फ़िक्र की दहलीज़ पर कश्तियाँ मौजों से लड़ कर पार कब की हो गईं नाख़ुदा अब तक खड़ा है फ़िक्र की दहलीज़ पर आज फिर माज़ी की धुन पर रक़्स होगा बज़्म में आज फिर से रतजगा है फ़िक्र की दहलीज़ पर तुम ने मुझ को इश्क़ में इक दिन मसीहा क्या कहा दर्द का जमघट लगा है फ़िक्र की दहलीज़ पर लफ़्ज़-ओ-मा'नी के परिंदो शोर इतना मत करो एक आँसू सो रहा है फ़िक्र की दहलीज़ पर हो रही है रूह तक इक रौशनी तहलील सी क्या किसी का दिल जला है फ़िक्र की दहलीज़ पर शर्त थी हर एक लब पर मोहर-ए-ख़ामोशी तो फिर हश्र सा क्यूँकर बपा है फ़िक्र की दहलीज़ पर चाँद तारे कहकशाँ रौशन फ़लक जुगनू चराग़ शम्स भी आकर पड़ा है फ़िक्र की दहलीज़ पर इश्क़ में ऐसा भी मैं ने वक़्त देखा है 'शिखा' ज़ख़्म ख़ुद मरहम हुआ है फ़िक्र की दहलीज़ पर