कहने को मुख़्तसर थी मगर बात तो हुई अच्छा हुआ वफ़ा की शुरूआ'त तो हुई इक उम्र से जो बिछड़े हुए थे हमारे यार शुक्र-ए-ख़ुदा कि उन से मुलाक़ात तो हुई थे चिलचिलाती धूप में झुलसे हुए बदन बादल सिमट के आ गए बरसात तो हुई शायद कि अब सुकून मिले भाग-दौड़ से दिन ने थका दिया था बहुत रात तो हुई जो शक का खेल था वो दिलों से निकल गया गर जीत हो न पाई तो फिर मात तो हुई