ख़ुदी को आज़माना चाहता हूँ तुझे भी भूल जाना चाहता हूँ तिरे लोगों में रिश्ते मर रहे हैं ज़मीं को ये बताना चाहता हूँ बहुत रोए हैं ये शबनम से मिल कर गुलों को मैं हँसाना चाहता हूँ बिना तेरे महक किस तरह फैली हवा को ये दिखाना चाहता हूँ जो पस-मंज़र में रहते हैं हमेशा उन्हें मंज़र में लाना चाहता हूँ नज़र उक्ता गई है मंज़रों से नई दुनिया बसाना चाहता हूँ फ़क़ीराना चटाई को बिछा कर सर-ए-शाही झुकाना चाहता हूँ अब अपने हिज्र की रूदाद 'नाशिर' सितारों को सुनाना चाहता हूँ