कहने को शम-ए-बज़्म-ए-ज़मान-ओ-मकाँ हूँ मैं सोचो तो सिर्फ़ कुश्ता-ए-दौर-ए-जहाँ हूँ मैं आता हूँ मैं ज़माने की आँखों में रात दिन लेकिन ख़ुद अपनी नज़रों से अब तक निहाँ हूँ मैं जाता नहीं किनारों से आगे किसी का ध्यान कब से पुकारता हूँ यहाँ हूँ यहाँ हूँ मैं इक डूबते वजूद की मैं ही पुकार हूँ और आप ही वजूद का अंधा कुआँ हूँ मैं सिगरेट जिसे सुलगता हुआ कोई छोड़ दे उस का धुआँ हूँ और परेशाँ धुआँ हूँ मैं