कहो बुतों से कि हम तब्अ सादा रखते हैं फिर उन से अर्ज़-ए-वफ़ा का इरादा रखते हैं यही ख़ता है कि इस गीर-ओ-दार में हम लोग दिल-ए-शगुफ़्ता जबीन-ए-कुशादा रखते हैं ख़ुदा गवाह कि असनाम से है कम रग़बत सनम-गरी की तमन्ना ज़ियादा रखते हैं दुकान-ए-बादा-फ़रोशां के सहन में 'आबिद' फ़रिश्ते ख़ुल्द का इक दर कुशादा रखते हैं