कहो इक दूसरे की कब ज़रूरत हो गए हम तुम भला कैसे गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हो गए हम तुम अना अद्ल आत्मा सच सब का सौदा यार कर बैठे सितम है इस तरह से नज़्र-ए-ग़ुरबत हो गए हम तुम मोहब्बत के मुक़द्दस मोहतरम माहौल में रह कर ज़रा देखो तो कितने ख़ूबसूरत हो गए हम तुम ग़लत-फ़हमी ग़ुरूर-ओ-शान-ओ-ज़िद और वहम के हाथों बस इक पल में मोहब्बत से अदावत हो गए हम तुम ज़हे क़िस्मत ऐ हमदम अपने फ़र्त-ए-इश्क़ के सदक़े जुनूँ की एक तारीख़ी हिकायत हो गए हम तुम छटे जब बद-गुमानी के अंधेरे तब समझ पाए कि तर्क-ए-इश्क़ से महरूम-ए-ने'मत हो गए हम तुम हमारी दोस्ती को देख कर कुढ़ते हैं बेचारे जहाँ वालों की ख़ातिर यार ज़हमत हो गए हम तुम सभी कहते हैं तिफ़्ली में बहुत मासूम भोले थे जवाँ हो कर भला कैसे क़यामत हो गए हम तुम