कहते हैं अब है शौक़ मुलाक़ात का मुझे जब हौसला रहा ही नहीं बात का मुझे समझा ये मैं कि दिल को मिरे फेरता है ये बासी जब उस ने पान रहा बात का मुझे दिन-रात देखता हूँ हसीनों के तज़्किरे रहता है शौक़ अपनी हिकायात का मुझे आती हैं याद यार के कानों की बिजलियाँ मौसम न जीने देगा कि बरसात का मुझे मुझ को अगर ग़रज़ है तो इक उन की ज़ात से 'आशिक़' नहीं है डर तो किसी ज़ात का मुझे