कहते हैं दाग़-ए-इश्क़ मिटाए न जाएँगे जलते हुए चराग़ बुझाए न जाएँगे ये दिल अज़ल से तेग़-ए-सितम का शिकार है इस दिल के तुम से नाज़ उठाए न जाएँगे वाइज़ तुझे बुतों से ग़रज़ क्या ख़ुदा से डर बे-घर हुए तो फिर ये बसाए न जाएँगे जब तक रहेगी शम-ए-मोहब्बत में रौशनी फ़ानूस नफ़रतों के जलाए न जाएँगे आ ही गए हैं अब जो तिरी जल्वा-गाह तक दिल को बग़ैर तूर बनाए न जाएँगे आज़ुर्दा ख़ातिरों से किनारा न कीजिए ये दीप बुझ गए तो जलाए न जाएँगे नख़वत से कुश्तगान-ए-वफ़ा को न देखिए ये नक़्श ज़िंदगी में मिटाए न जाएँगे ये क्या ख़बर थी तर्क-ए-वफ़ा पर भी वो हमें यूँ याद आएँगे कि भुलाए न जाएँगे शिकवों से ख़त्म होंगी न आपस की रंजिशें ये दश्त बस्तियों से मिटाए न जाएँगे 'अफ़्सूँ' तिरे वक़ार-ए-मोहब्बत का ज़िक्र क्या तेरे तो नक़्श-ए-पा भी मिटाए न जाएँगे