कहते हैं तेरी लाश पे आया न जाएगा तो उन से ख़ाक में भी मिलाया न जाएगा रहमत पे तुझ को नाज़ है इस्याँ पे मुझ को नाज़ सर तेरे सामने तो झुकाया न जाएगा नज़रों से गिरने वाले को काफ़ी है इक नज़र कुछ नक़्श-ए-पा नहीं कि उठाया न जाएगा तकलीफ़ कर तबस्सुम-ए-पिन्हाँ से पूछ ले ज़ख़्म-ए-निहाँ को मुझ से दिखाया न जाएगा मिटता है कोई हस्ती-ए-मौहूम का ख़याल वो पर्दा पड़ गया कि उठाया न जाएगा वारफ़्तगी-ए-शौक़ में लज़्ज़त यही है गर 'बेख़ुद' से अपने आप में आया न जाएगा