कहे ये कौन मकाँ अपना ला-मकाँ अपना अज़ल के बा'द से मिलता है कुछ निशाँ अपना है कुछ तो बात कि दा'वा है इक जहाँ का यही कि तू है अपना ज़मीं अपनी आसमाँ अपना हर एक गाम पे हर सम्त है सुजूद-ए-नियाज़ दयार-ए-यार को जाता है कारवाँ अपना नज़र भी दफ़्तर-ए-आ'माल पर वो कर न सके था अपना हाल ज़बाँ अपनी और बयाँ अपना दर-ए-रक़ीब पे सज्दे में आह दम तोड़ें हो जिन का क़ौल सर अपना है आस्ताँ अपना अदम से पहले की हालत अदम के बा'द का हाल मुझी से पूछ कि मैं ख़ुद हूँ राज़-दाँ अपना ये पूछता है कि क्यों दिल में है इक आग लगी ये देखता नहीं जलता है आशियाँ अपना नहीं ख़याल-ए-नशेमन मलाल है तो ये है कि हम ने आप उजाड़ा है आशियाँ अपना हर एक शो'ला लरज़ता है और हम चुप हैं क़फ़स के सामने जलता है आशियाँ अपना गिरी थी कौंद के बिजली कभी नशेमन पर ये देखता हूँ कि जलता है आशियाँ अपना अभी जमाल से पर्दे हज़ार बाक़ी हैं हरीम-ए-यार में 'बेख़ुद' गुज़र कहाँ अपना