क़ैद में गर मुझ को अपनी बाँधता रह जाएगा मेरे रहते वो मुझी को ढूँढता रह जाएगा यूँ तो बदलेगा नहीं कुछ भी तिरे जाने के बाद दामन-ए-ख़्वाहिश मगर हाँ भीगता रह जाएगा मेरी ख़ामोशी ही दे देगी उसे सारे जवाब वो सवाल अपने ही दिल से पूछता रह जाएगा किर्चियाँ कुछ ख़्वाबों की चुभती रहेगी आँखों में बाद तेरे उम्र भर का रत-जगा रह जाएगा मुब्तला गर इश्क़ में ऐ दिल हुआ तो सोच ले ज़िंदगी भर ज़िंदगी को ढूँढता रह जाएगा