क़ैद-ए-कौन-ओ-मकान से निकला हर नफ़स इम्तिहान से निकला मैं बुझा भी तो मेरे बा'द यहाँ इक धुआँ कैसी शान से निकला मंज़िल गुम-शुदा सुराग़ तिरा पाँव के इक निशान से निकला शुक्र है उस की याद का पैकर मेरे वहम-ओ-गुमान से निकला एक ठोकर पे नूर का दरिया शब की अंधी चटान से निकला बौखलाई हवा कि ताइर-ए-नौ कितनी ऊँची उड़ान से निकला आग पानी हवा और मिट्टी के 'आसिफ़' हर इम्तिहान से निकला