क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या चंद-रोज़ा उम्र की मीआद क्या मेरी ईज़ा से अदू हो शाद क्या तुझ पे तकिया ओ सितम-ईजाद क्या उन की ख़ातिर जाएँ बज़्म-ए-ग़ैर में आरज़ू-ए-जन्नत-ए-शद्दाद क्या पा रहा है दिल मुसीबत के मज़े आए लब पर शिकवा-ए-बेदाद क्या दिल में जो आए उसे कह डालिए आप की बातें करेंगे याद क्या दोस्तो आए हैं वो दुश्मन के साथ मुझ को देते हो मुबारकबाद क्या जब नहीं कुछ ए'तिबार-ए-ज़िंदगी इस जहाँ का शाद क्या नाशाद क्या कुछ अगर तासीर रखती है तो खींच वर्ना ऐ दिल हासिल-ए-फ़रियाद क्या जब ब-रंग-ए-गुल है पाबंद-ए-मकाँ बाँधते हैं सर्व को आज़ाद क्या है तिरा पामाल हर नख़्ल-ए-चमन तेरे आगे सर्व क्या शमशाद क्या यार की तस्वीर दिल पर खींच ली खींचते हम मिन्नत-ए-बहज़ाद क्या ग़ैर दिल से एक दम जाता नहीं हम तुझे आएँ सितमगर याद क्या मुझ से पहले सुन चुके हैं ग़ैर की वो मिरे हक़ में करें इरशाद क्या सर टपकते हैं असीरान-ए-क़फ़स है चमन की ऐ सबा रूदाद क्या आशिक़ी है सर पे लेना कोह-ए-ग़म नाज़िश-ए-सर बाज़ी-ए-फ़रहाद क्या अर्ज़ अपनी है जो है अर्ज़-ए-अदू देखिए करते हैं वो इरशाद क्या सर-कशी तुझ से करे क्या ताब है आदमी की ऐ ख़ुदा बुनियाद क्या बे-हक़ीक़त जान कर दिल को 'असर' तो ने ऐ नादाँ किया बर्बाद क्या