कैफ़-ए-ग़म लुत्फ़-ए-अलम याद आया किस का अंदाज़-ए-करम याद आया जादा-ए-ज़ीस्त के हर मोड़ पे क्यों काकुल-ए-यार का ख़म याद आया कर गया ग़र्क़-ए-नदामत दिल को जब तिरी आँख का नम याद आया न गया फिर तिरे आने का ख़याल तेरा जाना भी न कम याद आया पाया ज़ुल्मत से तजल्ली का शुऊ'र दैर में जा के हरम याद आया खुल गया वुसअ'त-ए-दामाँ का भरम क्यों तिरा दस्त-ए-करम याद आया आ गया नाम-ए-ख़ुदा लब पे मिरे जब वो पत्थर का सनम याद आया जी में आया ही था जीने का ख़याल यक-ब-यक शहर-ए-अदम याद आया फ़िक्र है ख़ुल्द-ब-दामाँ 'अतहर' कूचा-ए-रश्क-ए-इरम याद आया