तक़दीर-ए-शम्अ' जल्वा-ए-जानाना बन गया शो'ला उठा जो उस से तो पर्दा न बन गया जो हाल-ए-दिल था कैफ़ में तासीर-ए-दर्द था वो कहते कहते शौक़ का अफ़्साना बन गया जन्नत की आरज़ू से है जन्नत का कल वजूद वीराना कह दिया जिसे वीराना बन गया यक क़तरा दिल था मस्त का पैमाना-ए-नसीब साक़ी ने की निगाह तो मय-ख़ाना बन गया मौक़ा-शनास हुस्न-ए-मोहब्बत के बाब में अपना था और हश्र में बेगाना बन गया उस की तलब में जब न रहा उस का कुछ लिहाज़ अंदाज़-ए-बे-क़रार गदायाना बन गया यूँ अपने दर से टाल दिया उस के नाज़ ने अंदाज़-ए-लुत्फ़-ए-ख़ास करीमाना बन गया 'कैफ़ी' हरम के दर पे था जो कुछ वो फ़ैज़ था हाँ बुत-कदे में सज्दा-ए-शुकराना बन गया