ये धोका हो न हो उम्मीद ही मा'लूम होती है कि मुझ को दूर से कुछ रौशनी मा'लूम होती है ख़ुदा जाने किस अंदाज़-ए-नज़र से तुम ने देखा है कि मुझ को ज़िंदगी अब ज़िंदगी मा'लूम होती है इसी का नाम शायद ज़िंदगी ने यास रक्खा है नफ़स की जो खटक है आख़िरी मा'लूम होती है हुआ है हुस्न से कुछ और अक्स-ए-हुस्न-ए-ख़ुद-दारी ख़मोशी उन के होंटों पर हँसी मा'लूम होती है न आया हाथ मेरे बढ़ के जो दामन इनायत का ये महरूमी तलब की कुछ कमी मा'लूम होती है झुकाया आज दर पर ऐ ज़हे बख़्त-ए-सर-अफ़राज़ी तिरी रहमत क़ुबूल-ए-बंदगी मा'लूम होती है तुझे अपने लिए दस्त-ए-करम ये जानता हूँ मैं कि तू है जिस क़दर दुनिया वही मा'लूम होती है कहाँ हूँ किस तरफ़ हूँ मैं ख़बर इस की नहीं मुझ को यही गुम-गश्तगी कुछ आगही मा'लूम होती है सर-ए-मौज नफ़स कश्ती-ए-दिल को क्या कहूँ 'कैफ़ी' उभरती है जहाँ तक डूबती मा'लूम होती है