कैफ़ियत बतलाऊँ क्या तस्वीर की इक ग़ज़ल ज़िंदा हो जैसे 'मीर' की कौन जाने कब बदल देगा ख़ुदा बात मत करते रहो तक़दीर की माँग कर तुम ने दुआएँ क्या किया यार कोशिश तो करो तदबीर की ज़िंदगी सदियों नहीं पाता कोई लाख ले कोई दुआएँ पीर की ताज को मुर्दा इमारत मत कहो इश्क़ ने तो आरज़ू ता'मीर की प्यार से दुनिया यूँही मिलती रहे क्या ज़रूरत तीर की शमशीर की ख़ून से ख़त लिख दिया 'दिलदार' ने और तारीफ़ें हुईं तहरीर की