ज़िंदगी-बख़्श समर शाख़ में कम आते हैं अब के मौसम में जो आते हैं तो ग़म आते हैं दीन-ओ-ईमाँ से ग़रज़ है न रिवायात का पास तेल की खोज में यूरोप के सनम आते हैं दिल की वहशत न गई ज़ख़्म का टाँका न खुला उस की महफ़िल से भी बा-दीदा-ए-नम आते हैं बा-ख़बर ऐ चमन-ए-हिन्द के ख़ुश-रंग तुयूर दाना-ओ-दाम लिए अहल-ए-करम आते हैं शब-गज़ीदों से कोई जा के कहो मत घबराएँ परचम-ए-सुब्ह उठाए हुए हम आते हैं किस घराने से तअ'ल्लुक़ है हम अहल-ए-दिल का ख़ैर-मक़्दम के लिए दैर-ओ-हरम आते हैं जब से बाज़ार में बिकने लगे फ़नकार 'नियाज़' मुझ से अरबाब-ए-क़लम शहर में कम आते हैं