कैसा चक्कर काट के आना पड़ता है तेरे मेरे बीच ज़माना पड़ता है फिर अश्कों की क़िस्मत जागे या सोए पहले तो आँखों में आना पड़ता है मेरी मानो मत इस दर्जा ख़्वाब बुनो ख़्वाबों का महसूल चुकाना पड़ता है ख़ामोशी तो मर जाने का हासिल है ज़िंदा रहने शोर मचाना पड़ता है तुम बै-रागी तुम क्या जानो 'मोमिन' जी उल्फ़त में क्या कर जाना पड़ता है