डरा न पाएगा लश्कर तिरा ज़रा मुझ को मिरे ख़ुदा ने वो बख़्शा है हौसला मुझ को बना है जब से मिरा हम-सफ़र कोई जुगनू दिखा रहा है अंधेरे में रास्ता मुझ को सुराग़ मिलता नहीं है कहीं से मंज़िल का ये किस मक़ाम पे ला कर खड़ा किया मुझ को वो जिस को समझा था मैं ने यहाँ हबीब अपना वो शख़्स देने लगा इन दिनों दग़ा मुझ को जो उँगली थाम के चलता रहा सदा मेरी दिखा रहा है वही शख़्स आईना मुझ को वो कौन उर्दू का शैदा है शहर में 'सानी' सबक़ सिखा गया कल का मुशाएरा मुझ को