कैसा चमन असीरी में किस को इधर ख़याल पर्वाज़ ख़्वाब हो गई है बाल-ओ-पर ख़याल मुश्किल है मिट गए हुए नक़्शों की फिर नुमूद जो सूरतें बिगड़ गईं उन का न कर ख़याल मू को अबस है ताब कली यूँ ही तंग है उस का दहन है वहम-ओ-गुमान-ओ-कमर ख़याल रुख़्सार पर हमारे ढलकने को अश्क के देखे है जो कोई सो करे है गुहर ख़याल किस को दिमाग़-ए-शेर-ओ-सुख़न ज़ोफ़ में कि 'मीर' अपना रहे है अब तो हमें बेशतर ख़याल