कैसे बदल रहे हो बताता नहीं है क्या आईना कोई तुम को दिखाता नहीं है क्या ख़ल्क़-ए-ख़ुदा का ख़ौफ़ तो दिल में नहीं रहा तुम को ख़ुदा का ख़ौफ़ भी आता नहीं है क्या तारीक लग रही है है शब-ए-माहताब भी कोई यहाँ चराग़ जलाता नहीं है क्या बाशिंदगान-ए-शहर सभी महव-ए-ख़्वाब हैं इन को तिलिस्म-ए-शब भी जगाता नहीं है क्या