कैसे इन आँखों से देखूँ माह-ए-कामिल की तरफ़ मैं ने देखा है जमाल-ए-रौनक़-ए-दिल की तरफ़ देख लेता सिर्फ़ अपने ख़ाना-ए-दिल की तरफ़ यूँही माइल हो गया था क़ैस महमिल की तरफ़ मैं तो महव-ए-बे-ख़ुदी था मुझ को क्या मालूम है लाया है मेरा जुनूँ क्यों तेरी महफ़िल की तरफ़ डूबने वाले की हसरत का ये आलम देखिए फिर निगाह-ए-यास पहुँची अहल-ए-साहिल की तरफ़ आज बीमार-ए-अलम दुनिया से यूँ रुख़्सत हुआ दम लबों पर था मगर आँखें थीं क़ातिल की तरफ़ तुझ को इस रंगीं-निगाह-ए-हश्र-सामाँ की क़सम इक निगाह-ए-लुत्फ़-परवर भी मिरे दिल की तरफ़ ले चली बे-ताबी-ए-दिल आज 'जौहर' खींच कर उस बुत-ए-रंगीं-नज़र ज़ोहरा शमाइल की तरफ़