कभी मजबूर हो जाना कभी लाचार हो जाना हमें लाज़िम है गोया तालिब-ए-दीदार हो जाना न जाने बिल-मुशाफ़ा गुफ़्तुगू पर हश्र क्या होगा क़यामत हो गया जब उस से आँखें चार हो जाना सुकूँ जाता रहा दिल की तमन्ना में तड़प उठीं बला-ए-ना-गहानी था किसी से प्यार हो जाना ज़रा रश्क-ए-मसीहा हो के मेरे सामने आओ इलाज-ए-दर्द-ए-दिल है आप का दीदार हो जाना बहारों का करूँ क्यों इंतिज़ार अब क्या ज़रूरत है जिगर के दाग़ का मुश्किल नहीं गुलज़ार हो जाना हमें ले आया जज़्ब-ए-शौक़ उस मेराज-ए-उल्फ़त पर मयस्सर आ गया है नक़्श-बर-दीवार हो जाना ज़हे-क़िस्मत हुज़ूर-ए-हुस्न इज़्न-ए-बारयाबी हो बहुत अच्छा है 'जौहर' आइना-बरदार हो जाना