कैसे इस शहर में रहना होगा हाए वो शख़्स कि मुझ सा होगा रंग बिखरेंगे जो मैं बिखरूँगा तू जो बिखरेगा तो ज़र्रा होगा ख़ुश्क आँखों से इसी सोच में हूँ अब्र इस बार भी बरसा होगा अब भी पहरों है यही सोच मुझे वो मुझे छोड़ के तन्हा होगा वो बदन ख़्वाब सा लगता है मुझे जो किसी ने भी न देखा होगा ये तग़य्युर की हवा है प्यारे अब जहाँ फूल हैं सहरा होगा देखना तुम कि यही कुंज-ए-बहार फिर जो गुज़रोगे तो सूना होगा न ये चेहरे न ये मेले होंगे न कोई दोस्त किसी का होगा ऐसा बदलेगा सितमगर मौसम ख़ून शाख़ों से टपकता होगा न किसी सर में मोहब्बत का जुनूँ न किसी दिल में ये सौदा होगा हुस्न मजबूर तह-ए-दाम-ए-हवस इश्क़ महरूम-ए-नज़ारा होगा हम ने घर अपना जलाया है कि 'शौक़' शहर में कुछ तो उजाला होगा