कैसे जले हैं बाल-ओ-पर ये तो शरर से पूछिए मेरे जुनूँ का वाक़िआ' मेरे जिगर से पूछिए दिल को सुकूँ न मिल सका तेरे बग़ैर उम्र भर तीर-ए-नज़र की बात है ज़ौक़-ए-नज़र से पूछिए मेरा तो दिल निकाल कर जैसे हयात रख गई मैं ने किया था उस का क्या उस के ही शर से पूछिए हाए वो इक मक़ाम पर रहबर जहाँ पे रो दिया अहल-ए-सफ़र पे गुज़री किया गर्द-ए-सफ़र से पूछिए मुझ से ये पूछिए मुझे क्या है दिया हयात ने अहल-ए-नज़र की बात तो अहल-ए-नज़र से पूछिए नाज़ुक सी एक बात पर तन्हा जहान में ये दिल कितना तड़प के रह गया दर्द-ए-बशर से पूछिए इंसाँ को क्या मिला बता हस्ती तिरे वजूद से कैसे हुई ये रौशनी शम्स-ओ-क़मर से पूछिए क़ैद-ए-हयात में भी हाँ शौक़-ए-सुजूद ने मिरे सज्दे लुटाए कितने हैं उन के ही दर से पूछिए 'अशरफ़' बताए ज़िंदगी कैसे कि शर्मसार है अपना मक़ाम आप ख़ुद अपनी नज़र से पूछिए