क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो लाल डोरे तिरी आँखों में जो देखे तो खुला मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ हैं पैमाने दो ठहरो तेवरी को चढ़ाए हुए जाते हो किधर दिल का सदक़ा तो अभी सर से उतर जाने दो मनअ' क्यूँ करते हो इश्क़-ए-बुत-ए-शीरीं-लब से क्या मज़े का है ये ग़म दोस्तो ग़म खाने दो हम भी मंज़िल पे पहुँच जाएँगे मरते खपते क़ाफ़िला यारों का जाता है अगर जाने दो शम् ओ परवाना न महफ़िल में हों बाहम ज़िन्हार शम्अ'-रू ने मुझे भेजे हैं ये परवाने दो एक आलम नज़र आएगा गिरफ़्तार तुम्हें अपने गेसू-ए-रसा ता-ब-कमर जाने दो सख़्त-जानी से मैं आरी हूँ निहायत ऐ 'तल्ख़' पड़ गए हैं तिरी शमशीर में दंदाने दो हश्र में पेश-ए-ख़ुदा फ़ैसला इस का होगा ज़िंदगी में मुझे उस गब्र को तरसाने दो गर मोहब्बत है तो वो मुझ से फिरेगा न कभी ग़म नहीं है मुझे ग़म्माज़ को भड़काने दो जोश-ए-बारिश है अभी थमते हो क्या ऐ अश्को दामन-ए-कोह-ओ-बयाबाँ को तो भर जाने दो वाइ'ज़ों को न करे मनअ' नसीहत से कोई मैं न समझूँगा किसी तरह से समझाने दो रंज देता है जो वो पास न जाओ 'सय्याह' मानो कहने को मिरे दूर करो जाने दो