कैसे कह देता कोई किरदार छोटा पड़ गया जब कहानी में लिखा अख़बार छोटा पड़ गया सादगी का नूर चेहरे से टपकता है हुज़ूर मैं ने देखा जौहरी बाज़ार छोटा पड़ गया मुस्कुराहट ले के आया था वो सब के वास्ते इतनी ख़ुशियाँ आ गईं घर-बार छोटा पड़ गया दर्जनों क़िस्से-कहानी ख़ुद ही चल कर आ गए उस से जब भी मैं मिला इतवार छोटा पड़ गया इक भरोसा ही मिरा मुझ से सदा लड़ता रहा हाँ ये सच है उस से मैं हर बार छोटा पड़ गया उस ने तो एहसास के बदले में सब कुछ दे दिया फ़ाएदे नुक़सान का व्यापार छोटा पड़ गया घर में कमरे बढ़ गए लेकिन जगह सब खो गई बिल्डिंगें ऊँची हुई और प्यार छोटा पड़ गया गाँव का बिछड़ा कोई रिश्ता शहर में जब मिला रुपया डॉलर हो कि दीनार छोटा पड़ गया मेरे सिर पर हाथ रख कर मुश्किलें सब ले गया इक दुआ के सामने हर वार छोटा पड़ गया चाहतों की उँगलियों ने उस का कांधा छू लिया सोने चाँदी मोतियों का हार छोटा पड़ गया