रात आ बैठी है पहलू में सितारो तख़लिया अब हमें दरकार है ख़ल्वत सो यारो तख़लिया आँख वा है और हुस्न-ए-यार है पेश-ए-नज़र शश-जिहत के बाक़ी-माँदा सब नज़ारो तख़लिया देखने वाला था मंज़र जब कहा दरवेश ने कज-कुलाहो बादशाहो ताज-दारो तख़लिया ग़म से अब होगी बराह-ए-रास्त मेरी गुफ़्तुगू दोस्तो तीमार-दारो ग़म-गुसारो तख़लिया चार जानिब है हुजूम-ए-ना-शनायान-ए-सुख़न आज पूरे ज़ोर से 'फ़ारिस' पुकारो तख़लिया