कैसे कहें कि चार तरफ़ दायरा न था जाते कहाँ कि ख़ुद से परे रास्ता न था जब साँस ले रही थी दरख़्तों के आस-पास आवाज़ दे रही थी कोई बोलता न था ख़ुद से चले तो रह-गुज़र आईना हो गई अपने सिवाए और कोई सूझता न था अब के बसंत आई तो आँखें उजड़ गईं सरसों के खेत में कोई पत्ता हरा न था पर्दा हिला के बाद-ए-सहर दूर तक गई ख़ुश्बू किधर से आई किसी को पता न था गुज़री तमाम उम्र उसी शहर में जहाँ वाक़िफ़ सभी थे गो कोई पहचानता न था ऐ 'अश्क' इक किताब पढ़ी थी वरक़ वरक़ वो तीरगी थी लफ़्ज़ कोई सूझता न था