कैसे कहूँ सफ़ीने को सैलाब ले गया मेरा नसीब था जो तह-ए-आब ले गया इक जान-ए-आरज़ू की तमन्ना-ए-दीद में जाने कहाँ कहाँ दिल-ए-बेताब ले गया मातम-कुनाँ है शाख़ फ़ज़ा-ए-चमन उदास ये कौन तोड़ कर गुल-ए-शादाब ले गया गोया मता-ए-दिल ही थी मेरी मता-ए-ज़ीस्त दिल ले के कोई ज़ीस्त के अस्बाब ले गया सूरत दिखा के ख़्वाब में इक आन के लिए ये कौन ज़िंदगी के हसीं ख़्वाब ले गया दिल का क़रार दिल का सुकूँ दिल की राहतें ये कौन मेरी ज़ीस्त के अस्बाब ले गया रिंदान-ए-लखनऊ के लिए तोहफ़ा-ए-'उमीद' साक़ी शराब-ए-उल्फ़त-ए-अहबाब ले गया