कैसे कैसे मेरे मंज़र हो गए अश्क आँखों में समुंदर हो गए ज़िंदगी आवारगी तक आ गई तुम से बिछड़े और बे-घर हो गए कोई मंज़िल और न क़दमों के निशाँ हम तिरे रस्ते का पत्थर हो गए अपनी बर्बादी का क़िस्सा मुख़्तसर हादसे अपना मुक़द्दर हो गए आइनों की ये जसारत देखिए मेरे क़ामत के बराबर हो गए बढ़ गई 'ख़ुर्शीद' जब शोहरत मिरी दोस्तों के ग़ैर तेवर हो गए