मैं ने जिस शख़्स की बरसों से तरफ़-दारी की उस ने मेरे ही लिए जंग की तय्यारी की मेरे बारे में वो तहक़ीक़ किया करता है मिल गई मुझ को सनद मेरी वफ़ादारी की जिन से ईमान की तस्वीर है टुकड़े टुकड़े गुफ़्तुगू वो भी किया करते हैं ख़ुद्दारी की चल दिए जानिब-ए-मंज़िल को ब-हमराह-ए-जुनूँ हम ने तो फ़िक्र न की राह की दुश्वारी की बज़्म-ए-याराँ में जो ख़ामोश रहा करता था आज उस शख़्स ने लफ़्ज़ों की शरर-बारी की इश्क़ में दिल को तसल्ली नहीं मिलने वाली फिर मिरे साथ मिरे नफ़्स ने मक्कारी की उठ गया आज नक़ाब उस के रुख़-ए-ज़ेबा से तोड़ दी उस ने वो ज़ंजीर ही दिलदारी की जिस जहाँ में यूँ अदावत की छुरी चलती हो क्या ज़रूरत वहाँ 'ख़ुर्शीद' रवादारी की