कैसे शाम-ओ-सहर हो गए हम इधर तुम उधर हो गए आप जो हम-सफ़र हो गए रास्ते मुख़्तसर हो गए छोड़ कर आस्ताना तिरा जाने क्यों दर-ब-दर हो गए हम समझते थे बे-बाल-ओ-पर हम न होंगे मगर हो गए ए'तिबार-ए-मसर्रत कहाँ दर्द-ओ-ग़म मो'तबर हो गए क्या बताएँ कटी कैसे शब किस तरह दिन बसर हो गए