कैसे तूफ़ान इस सफ़र में हैं जैसे कुछ हादसे नज़र में हैं मेरे भी दिल में राख उड़ती है तेरे भी ख़्वाब इस असर में हैं वो घना पेड़ हो कि साया-तलब आख़िरश सब ही चश्म-ए-तर में हैं प्यास से दम मिरा भी घुटता है शब के सन्नाटे भी ख़बर में हैं ख़्वाहिश-ए-बे-नवा है जब से सिवा तेरे अफ़्साने हर नगर में हैं