कई अज़ाब-रुतों का इ'ताब बाक़ी है कुछ आरिज़ों का भी तो एहतिसाब बाक़ी है ये क्या कि शब की असीरी में क़ैद हो जाएँ यक़ीं है जबकि रुख़-ए-माहताब बाक़ी है पड़ाव डाल रहे हैं सहर के अगले क़दम मिरी ज़मीं में अभी इज़्तिराब बाक़ी है मैं कैसे मान लूँ ऐ जाँ कि हर्फ़-ए-ताज़ा में तिरे जुनूँ का वो पहला निसाब बाक़ी है