कैसी कैसी आयतें मस्तूर हैं नुक़्ते के बीच क्या घने जंगल छुपे बैठे हैं इक दाने के बीच रफ़्ता रफ़्ता रख़्ना रख़्ना हो गई मिट्टी की गेंद अब ख़लीजों के सिवा क्या रह गया नक़्शे के बीच मैं तो बाहर के मनाज़िर से अभी फ़ारिग़ नहीं क्या ख़बर है कौन से असरार हैं पर्दे के बीच ऐ दिल-ए-नादाँ किसी का रूठना मत याद कर आन टपकेगा कोई आँसू भी इस झगड़े के बीच सारे अख़बारों में देखूँ हाल अपने बुर्ज का अब मुलाक़ात उस से होगी कौन से हफ़्ते के बीच मैं ने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी वक़्त पूछेंगे कई मज़दूर भी रस्ते के बीच