दिल में अगर न इश्क़-ओ-मोहब्बत की चाह हो नाला न दर्द हो न फ़ुग़ाँ हो न आह हो रुस्वा न ए'तिबार-ए-तग़ाफ़ुल को कीजिए क्या फ़ाएदा कि पुर्सिश-ए-दिल गाह गाह हो दुश्मन से पूछता हूँ निशान-ए-हरीम-ए-नाज़ मेरी तरह से कोई न गुम-कर्दा-राह हो राह-ए-जुनूँ में मुझ को किसी से नहीं है काम बस मैं हूँ और इक दिल-ए-शोरिश-पनाह हो कर अब तू फ़िक्र हुस्न-ए-अमल कूच है क़रीब रस्ता कठिन है साथ में कुछ ज़ाद-ए-राह हो तौहीन-ए-शान अफ़्व है इस्याँ से इज्तिनाब या'नी गुनाहगार है जो बे-गुनाह हो दुनिया में ऐसे लोगों से पाला पड़े न 'शौक़' ज़ाहिर हो जिन का साफ़ तो बातिन सियाह हो