कैसी वबा-ए-ख़ौफ़ ज़मीं पर है इन दिनों हर एहतियात ग़ैर-मुअस्सर है इन दिनों तपते हुए अमान के सहरा हैं आज-कल सूखा हुआ करम का समंदर है इन दिनों हर लहज़ा मैं घड़े की तरफ़ चक्करों में हूँ हर आन मेरी चोंच में पत्थर है इन दिनों जाओ कहीं निवाला-ए-याजूज बन रहो मौ'ऊद-ए-वक़्त ग़ार के अंदर है इन दिनों किस बच्चे को सुनाऊँ मैं परियों की दास्तान ये भूक की चुड़ैल तो घर घर है इन दिनों इस दौर में तो पागलो धंदा हैं क़ुर्बतें देखो मफ़ाद सोच का महवर है इन दिनों बुझ कर है फ़ी-ज़माना नज़र और ख़ुश-नज़र दिल और दिल-फ़रेब उजड़ कर है इन दिनों ये शाहराह-ए-दिल ही सिरहाना है आज-कल ये गर्द-ए-राहगीर ही बिस्तर है इन दिनों बिगड़ा है आफ़्ताब-ए-मुक़द्दर का मुँह 'ज़ुबैर' सर पर ख़याल-ए-यार की चादर है इन दिनों