कल अपने शहर की बस में सवार होते हुए वो देखता था मुझे अश्क-बार होते हुए परिंदे आए तो गुम्बद पे बैठ जाएँगे नहीं शजर की ज़रूरत मज़ार होते हुए है एक और भी सूरत रज़ा-ओ-कुफ़्र के बीच कि शक भी दिल में रहे ए'तिबार होते हुए मिरे वजूद से धागा निकल गया है दोस्त मैं बे-शुमार हुआ हूँ शुमार होते हुए डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक भँवर के बीच हूँ दरिया के पार होते हुए वो क़ैद-ख़ाना ग़नीमत था मुझ से बे-घर को ये ज़ेहन ही में न आया फ़रार होते हुए