कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा सादा माँझे का उसे माह ने गोला भेजा नाम का उस के जो मैं कह के मुअम्मा भेजा ये भी हरकत है बुरी उस ने ये फ़रमा भेजा उस की फ़रमाइशें क्या क्या न बजा लाया मैं कभी पट्टा कभी लचका कभी गोटा भेजा क़ैस ओ फ़रहाद को जागीर यही इश्क़ ने दी एक को कोह मिला एक को सहरा भेजा सोज़न ओ शाना ओ आईना ख़रीदे हम ने कभी भेजा भी तो उस गुल को ये सौदा भेजा फिर तह-ए-ख़ाक मिरा दाग़-ए-जिगर ताज़ा हुआ किस ने तुर्बत पे मिरी लाला-ए-हमरा भेजा आशिक़ों में उसे गिनते नहीं वारस्ता-मिज़ाज जिस ने ता-नोक-ए-क़लम हर्फ़-ए-तमन्ना भेजा दाग़-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर कुल्फ़त-ए-ग़म दर्द-ए-फ़िराक़ हज़रत-ए-इश्क़ ने क्या क्या नहीं तोहफ़ा भेजा 'मुसहफ़ी' जा के वहाँ भूल गए क्या हम को कभी यारान-ए-अदम ने जो न पुर्ज़ा भेजा