कल रास्ते में एक अजब वाक़िआ' हुआ वो पहली बार गुज़रा मुझे देखता हुआ ऐ ख़ामा-ए-नवा है अगर वाक़ई हुनर दीवार-ए-जाँ पे नक़्श बना बोलता हुआ गुम हो गईं कहाँ वो परी-चेहरा तितलियाँ करता है इंतिज़ार दरीचा खुला हुआ ख़ुशियाँ उदास हो गईं चेहरे उतर गए सब कुछ था ठीक-ठाक ये लम्हों में क्या हुआ क्यों आसमाँ ने खींच ली तलवार दफ़अ'तन क्या कह रहा था दस्त-ए-दुआ' काँपता हुआ चेहरे की हर ख़राश ने की मुझ से गुफ़्तुगू जब एक आइने से मिरा सामना हुआ 'यावर' अभी समेट लो कश्कोल चश्म में बाक़ी न फिर बचेगा गुलों पर लिखा हुआ