कल से दिल-ए-बीमार की हालत नहीं अच्छी अल्लाह करे ख़ैर हो सूरत नहीं अच्छी उस शोख़ से मिलने की ये सूरत नहीं अच्छी मौत अच्छी मगर ग़ैर की मिन्नत नहीं अच्छी मैं आशिक़-ए-गेसू हूँ बहलता है यहीं दिल क्यूँकर ये कहूँ क़ब्र की वहशत नहीं अच्छी देखो कि गले मिलते ही सर काटती है तेग़ सच कहते हैं ज़ालिम की मोहब्बत नहीं अच्छी कह कर कमर-ए-यार को मादूम हुए ग़म हर जा पे तबीअत की भी जौदत नहीं अच्छी क़ातिल तुझे देगा लब-ए-हर-ज़ख़्म दुआएँ हर-वक़्त नमक डाल ये ख़िस्सत नहीं अच्छी ऐ शैख़ न कर शौक़ में हूरों की इबादत हरगिज़ न मिलेंगी तिरी निय्यत नहीं अच्छी ये कह के लहद मेरी वो कर जाते हैं पामाल फिर इस को बनाओ कि ये तुर्बत नहीं अच्छी इक ऐब भी है हुस्न के हमराह बुतों में सूरत अगर अच्छी है तो सीरत नहीं अच्छी है है तुझे किस ज़ालिम-ए-बे-रहम ने रौंदा हालत जो तिरी सब्ज़ा-ए-तुर्बत नहीं अच्छी क्यों तूर शरार-ए-रुख़-ए-रौशन से जलाए कह दे कोई उन से ये शरारत नहीं अच्छी जाते ही तिरे छा गई घर भर में उदासी मैं क्या दर-ओ-दीवार की हालत नहीं अच्छी उश्शाक़ को वो देखते हैं चश्म-ए-ग़ज़ब से इक मुसहफ़-ए-रुख़ में यही सूरत नहीं अच्छी पैदा करो अंदाज़ नए ताज़ा अदाएँ ज़ुल्म-ओ-सितम-ओ-जौर में जिद्दत नहीं अच्छी मैं ने जो कहा रंज है क्या मर्ग-ए-अदू का बोले कि नहीं मेरी तबीअत नहीं अच्छी ऐ दीदा-ए-तर रो कि कटें हिज्र की रातें बरसात में पानी की ये क़िल्लत नहीं अच्छी घेरा जो मुझे दायरा-ए-रंज-ओ-अलम ने क्या मेरे मुक़द्दर की किताबत नहीं अच्छी ऐ 'बज़्म' उठा करता है क्यों दर्द जिगर में सच कह किसे देखा कि तबीअत नहीं अच्छी