अदू की बज़्म में ऐ 'बज़्म' ये शब तो बसर कर लो अगर देखा नहीं जाता तो मुँह अपना उधर कर लो एवज़ उल्फ़त के दिल है फ़ैसला बाहम-दिगर कर लो रज़ा के साथ है सौदा न डर कर दो न डर कर लो बिगड़ने का भला है वस्ल की सोहबत में क्या मौक़ा बदी ये कब थी ऐसे में तुम अपना मुँह उधर कर लो फ़ना होना है जब ग़म और ख़ुशी फिर सब बराबर है जहाँ में चार दिन की ज़ीस्त कैसी ही बसर कर लो ख़ुशा-शोख़ी दुपट्टा जब हटा सीने से फ़रमाया तुम्हें मेरी क़सम है मुँह न अपना गर उधर कर लो जब अपने ग़म का क़िस्सा बैठता हूँ उन से कहने को तो कहते हैं लब अपने ख़ुश्क कर लो चश्म तर कर लो इशारे पर तुम्हारे चल रहा है आलम-ए-इम्काँ उसी जानिब हो सब का रुख़ तुम अपना मुँह जिधर कर लो शिकायत जब कभी जौर-ओ-जफ़ा की उन से करता हूँ तो सख़्ती से ये फ़रमाते हैं पत्थर का जिगर कर लो भरोसा उस की रहमत पर है जब ज़ाहिद तो फिर क्या है हसीनों को तो ज़िंदा रह के लो हूरों को मर कर लो बहुत कार-ए-अहम है काटना आशिक़ की गर्दन का उठाओ तेग़ फिर पहले नज़ाकत पर नज़र कर लो पहुँच कर सामने उन के न फिर आवाज़ निकलेगी यहाँ ऐ हज़रत-ए-दिल जितना चाहो शोर-ओ-शर कर लो तुम्हारा याँ से जाना 'बज़्म' से देखा न जाएगा सहर फ़ुर्क़त की आ पहुँची अभी से मुँह उधर कर लो