कल तलक जो था तसव्वुर अंजुमन-आराइयों का वो मुक़द्दर बन गया है अब मिरी तन्हाइयों का ज़िंदगानी फिर बिखरने टूटने वाली है शायद ऐ ज़मीं फिर आ गया मौसम तिरी अंगड़ाइयों का इस जहाँ में आज जिस के सर पे ताज-ए-ख़ुसरवी है सारा क़िस्सा बस इसी के नाम है दानाइयों का आदमी मुझ को बनाया है उन्ही रुस्वाइयों ने है अज़ल से साथ मेरा और मिरी रुस्वाइयों का ऐ 'वली' रिश्ता समुंदर से है दिल का कुछ यक़ीनन कोई अंदाज़ा लगा पाया न उन गहराइयों का