दिल तोड़ कर वो दिल में पशीमाँ हुआ तो क्या इक बेनियाज़-ए-नाज़ पे एहसाँ हुआ तो क्या अपना इलाज-ए-तंगी-ए-दिल वो न कर सके मेरा इलाज-ए-तंगी-ए-दामाँ हुआ तो क्या जब बाल-ओ-पर ही नज़्र-ए-क़फ़स हो के रह गए सेहन-ए-चमन में शोर-ए-बहाराँ हुआ तो क्या इक उम्र रख के रूह मिरी तिश्ना-ए-नशात अब नग़्मा-ए-हयात पर-अफ़्शाँ हुआ तो क्या जब मेरे वास्ते दर-ए-मय-ख़ाना बंद है सहबा में ग़र्क़ आलम-ए-इम्काँ हुआ तो क्या टूटे पड़े हैं साज़-ए-मोहब्बत के तार तार अब शाहिद-ए-ख़याल ग़ज़ल-ख़्वाँ हुआ तो क्या आदम ने एक ख़ोशा-ए-गंदुम को क्या किया मुजरिम कभी जो भूक से इंसाँ हुआ तो क्या 'वामिक़' की तीरा-बख़्ती का आलम वही रहा ज़ुल्मत-कदे में चश्मा-ए-हैवाँ हुआ तो क्या