कल तो खेले था वो गिली डंडा डंड-पेल आज हो गया संडा लाल कुर्ता है इश्क़ आशिक़ को आग में जैसे सुर्ख़ हो कंडा दिल है यूँ ज़ख़्म-दार-ए-डास-फ़लक जैसे होता है मछली का खन्डा सब में मशहूर है शुजाअत-ए-मुर्ग़ बाह अफ़्ज़ूँ करे न क्यूँ अण्डा क़िलअ-ए-चर्ख़ पर शब-ए-हिज्राँ जा के गाड़ा है आह ने झंडा 'मुसहफ़ी' ग़म में उस सही क़द के सूख कर हो गया है सरकंडा हुक्म है मुफ़लिसी का मुफ़लिस को शाम से तू चराग़ कर ठंडा