क़ल्ब को बर्फ़-आश्ना न करो गुल किसी तौर ये दिया न करो ज़िंदगी भी है एक मर्ग-ए-दवाम तुम जो जीने का हक़ अदा न करो जिस में फूलों पे पाँव धरना पड़े इख़्तियार ऐसा रास्ता न करो ज़हर पी जाओ बाँकपन के साथ ज़हर चखने का तजरबा न करो गुर सिखाए जो जंग-बाज़ी के ऐसी दानिश को रहनुमा न करो ज़ुल्म तो ज़ालिमों का शेवा है क़हर है तुम जो तज्ज़िया न करो सब ख़िज़ाँ ज़ादे कह रहे हैं 'हज़ीं' याँ पे ज़िक्र-ए-गुल-ओ-सबा न करो