क़ल्ब-ए-वारफ़्ता मोहब्बत में कहीं ऐसा न हो जिस को तू अपना समझता है वही बेगाना हो हर सितम पर मुस्कुराना मेरी फ़ितरत है मगर देखिए इस ज़ब्त का अंजाम क्या हो क्या न हो मैं ने माना आप ने सब कुछ भुला डाला मगर ग़ैर-मुमकिन है कभी मेरा ख़याल आता न हो हुस्न को ये ग़म कि जल्वे हो रहे हैं बे-नक़ाब इश्क़ को ये फ़िक्र नामूस-ए-नज़र रुस्वा न हो शौक़ से तू भूल जा ऐ भूलने वाले मगर इस तग़ाफ़ुल में कोई पहलू तवज्जोह का न हो गिर गया उन की निगाहों से दिल-ए-ख़ाना-ख़राब मेरी नज़रों से भी गिर जाए कहीं ऐसा न हो बहर-ए-तकमील-ए-नज़ारा ये भी लाज़िम है 'नसीम' मेरे उन के दरमियाँ हाइल कोई पर्दा न हो