ख़्वाहिश-ए-जाँ को आज़माना है ग़म पुकारे तो मुस्कुराना है हुस्न फिर ले रहा है अंगड़ाई प्यार को फिर फ़रेब खाना है इक तिरे गेसुओं की छाँव में हर उजाला समेट लाना है उन को बारिश का ख़ौफ़ है जिन को अपना घर आग में जलाना है वो चमक हूँ कि राएगाँ हो कर दर-ओ-दीवार को सजाना है आते आते क़रार आएगा रफ़्ता रफ़्ता तुझे भुलाना है